त्रयोदशी पर जसोलधाम में मां की एक झलक पाने के लिए आतुर दिखे लाखो श्रद्धालु..
श्रदालुओं ने माजीसा की मोहिनी मूर्त देख सुख समृद्धि की मांगी में मन्नत
भोर की पहली किरण के साथ उमड़ा माजीसा के भक्तों का ज्वार..
जसोल- पश्चिमी राजस्थान का शक्तिपीठ स्थल व आस्था की नगरी जसोल धाम में भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी गुरुवार को जगतजननी श्री माता राणी भटियाणी मंदिर में दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। हजारों-हजारों श्रद्धालु उमडऩे पर मंदिर मुख्य द्वार-प्रवेश मार्ग तक लंबी कतारें नजर आई। बच्चे से लेकर बुजुर्ग तो महिलाएं मुख्य प्रवेश द्वार से बाहर तक कतारों में मां की एक झलक पाने के लिए आतुर नजर आए। घंटों प्रतीक्षा बाद आई बारी पर श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन-पूजन कर व प्रसाद चढ़ा परिवार में खुशहाली की कामना की। भजन गाते हुए जयकारे लगाए। इस पर पूरे दिन धर्ममय माहौल रहा। सुबह 5.30 बजे आरती के लिए मंदिर के पट (दरवाजे) खुले तो कतारों में खड़े श्रद्धालु उत्साह से मां के जयकारे लगाते नजर आए, वहीं मंदिर में पहले पूजा-अर्चना को लेकर श्रद्धालुओं में होड़ सी देखने को मिली। श्रद्धालुओं ने श्री माता राणी भटियाणी, श्री कल्याणसिंह जी, श्री बायोसा मंदिर, श्री सवाईसिंहजी, श्री लाल बन्नासा, श्री खेतलाजी व श्री भेरूजी के मंदिर में दर्शन पूजन कर परिवार में खुशहाली की कामनाएं कीं। धार्मिक दृष्टि से भाद्रपद त्रयोदशी बड़ा माह व तिथि होने पर जसोलधाम में मारवाड़ भर से श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। ब्रह्ममुहूर्त में श्रद्धालुओं के मंदिर पहुंचने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वो देर रात तक जारी रहा। बालोतरा व आसपास दर्जनों गांवों से हजारों श्रद्धालु पैदल जत्थों के रूप में माजीसा के जयकारे लगाते, भजन गाते व नृत्य करते हुए मंदिर पहुंचे। इससे मेला सा माहौल बना रहा। माजीसा के धाम में नवविवाहित दंपतियों ने सुखी दांपत्य जीवन की कामना की तो नवजातों के झडूले उतारकर स्वस्थ व समृद्ध जीवन की प्रार्थना की। देर शाम तक 2 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने मां के दरबार में मत्था टेक मन्नतें मांगीं
त्रयोदशी पर दिखी माजीसा की मोहिनी मूर्त-
भाद्रपद त्रयोदशी के दिन भोर की वेला में मांजीसा की प्रतिमा का विशेष पूजन किया गया। मन्दिर संस्थान की और से प्रतिमा को नए वस्त्रों, गहनों, फूलों से आकर्षक शृंगार किया गया। जिससे दर्शनों को आने वाले भक्तों को माता की मोहिनी मूर्त के दर्शन हो सके। दर्शनों की बारी आने पर श्रद्धालु माता की मोहिनी मूर्त को निहारते नजर आए ।
मन्दिर ट्रस्ट की और से सुरक्षा के कड़े बन्दोबस्त-
भाद्रपद मेले व त्रयोदशी को लेकर श्री राणी भटियाणी मंदिर ट्रस्ट की ओर से श्रद्धालुओं के लिए छाया, पानी, चिकित्सा व सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए। लाखो की संख्या में पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट की ओर से बडी संख्या में सीसीटीवी कैमरे लगवाए गए। जिससे हर प्रकार से नजर बनी रहे। साथ ही पुलिस प्रशासन की ओर से मंदिर परिसर में सुरक्षा के माकूल बंदोबस्त किए गए ।
रातभर ज्योत जलाकर दिया माता का रातीजोगा-
देश के कोने कोने से पहुंचे श्रदालुओं ने मनोकामनाएं पूर्ण होने पर तेरस की पूर्व रात्रि को जसोलधाम में भीड़ नजर आई। श्रद्धालुओं ने मां की ज्योत जलाकर रात भर संकीर्तन किया, वहीं सुबह दर्शन पूजन के साथ प्रसादी का भोग लगाकर श्रद्धालुओं में वितरित किया।
त्रयोदशी पर दर्शन के महात्म्य को लेकर रात से ही श्रद्धालु कतारों में लग जाते हैं, ताकि सुबह की आरती के साथ प्रथम दर्शन कर सकें।
पुत्र वियोग से हुई देवलोक, पीहर के दमामी (ढोली) को दिया पहला पर्चा-
जैसलमेर जिले के जोगीदास गांव में वि.सं. 1747 को जोगराज सिंह भाटी के यहां एक पुत्री का जन्म हुआ, जिसका नाम रखा गया स्वरूप कंवर। मालाणी की राजधानी जसोल के राव भारमल के पुत्र जेतमाल के उत्तराधिकारी राव कल्याण सिंह के पहली पत्नी के पुत्र नहीं होने पर स्वरूप कंवर के साथ उनका दूसरा विवाह हुआ। विवाह के दो साल बाद राणी सा भटियाणी सा ने बालक को जन्म दिया, जिसका नाम लालसिंह रखा गया। इससे प्रथम राणी देवड़ी के रूठी रहने लगी तो स्वरूप कंवर ने उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहा कि मां भवानी की पूजा-अर्चना कर व्रत व आस्था रखें, उनकी मुराद जरूर पूरी होगी। देवड़ी राणी ने स्वरूप कंवर की बातों में विश्वास कर वैसा ही किया, इस पर कुछ समय पश्चात उनके भी पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। राणी सा स्वरूप जब झूला झुलाकर वापस आई तो अपने पुत्र के न जागने पर व उसे मृत देखकर पुत्र वियोग में व्याकुल हो गई तथा कुछ समय बाद ही उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। एक दिन राणी सा भटियाणी सा के गांव से दो ढोली शंकर व ताजिया रावल कल्याणमल के यहां जसोल पहुंचे। उन्होंने बाइसा से मिलने का कहा तो राणी देवड़ी ने उन्हें श्मशान में जाकर मिलने की बात कही। इससे दुखी होकर ढोली गांव के श्मशानघाट पर जाकर बाईसा से विनती करने लगे और आप बीती सुनाई। इस पर प्रसन्न होकर राणी सा भटियाणी सा ने दोनों को साक्षात दर्शन देकर पर्चा दिया और दमामियों को उपहार स्वरूप नेक भी दी। इसे लेकर वे वापस रावल के यहां पहुंचे तो एकबारगी सभी अचरज में पड़ गए, लेकिन कुछ ही दिनों में यह बात आस-पास के गांवों में फैल गई।
इस पर रावल कल्याणमल कुछ लोगों के साथ श्मशानघाट पहुंचे तो वहां पर खड़ी खेजड़ी हरी-भरी नजर आई। इस पर उसी जगह राणी भटियाणी के चबूतरे पर एक मंदिर बनवा दिया और उनकी विधिवत पूजा करने लगे। तब से आज दिन तक दिनों दिन श्रद्धालुऑ की आस्था/ श्रद्धा बढती गई जिससे आज जसोल "जसोल धाम" बन गया है ओर शक्ति पिठों की श्रेणी में माना जाता है |